जो लहर आएगी, कुछ देकर ही जाएगी

In these turbulent times, I was reminded of a poem I wrote a long time ago but find it relevant even today. I hope you all will find it inspiring.
प्रकृति के नियम को निर्विवाद निभाएगी,
जो लहर आएगी, कुछ देकर ही जाएगी
तुम डरना मत जीवन की इन लेहेरों से
छोड़ो मत बनाना घरोंदें सागर किनारों पे
हो सकता है यह लहर तेरा घर तो तोड़ जाएगी
पर शंख मोती मणि सब तेरे लिए छोड़ जाएगी
घर तेरा भले ही बिखरे कला न तेरी जाएगी
पर छोड़ दिया जो सृजन तो यह प्रकृति पचताएगी
जो लहर आएगी वह कुछ देकर ही जाएगी
भीरुता से कभी कोई क्या पता है
लगे रहो, तुम्हारा क्या जाता है
कुछ ना साथ आया नाही साथ जायेगा
पर बनाया एक पथ किसी भटके को काम आएगा
डर कर जो भागे तो यह लहर खा जाएगी
अपनाएगी भी नहीं शव किनारे छोड़ जाएगी
जो लहर आएगी वह कुछ देकर ही जाएगी
जीवन तो युद्ध है इन आती जाती लेहेरों से
मत डर इन उफनते पानी गेहेरों से
इसी समुद्र में ही उस पार का पथ छुपा है
जो डटा रहा अंतिम तक, मुक्ति उसको ही भायेगी
क्यूंकि, जो लहर आएगी वह कुछ देकर ही जाएगी.
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