In these turbulent times, I was reminded of a poem I wrote a long time ago but find it relevant even today. I hope you all will find it inspiring.
पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के नियम को निरà¥à¤µà¤¿à¤µà¤¾à¤¦ निà¤à¤¾à¤à¤—ी,
जो लहर आà¤à¤—ी, कà¥à¤› देकर ही जाà¤à¤—ी
तà¥à¤® डरना मत जीवन की इन लेहेरों से
छोड़ो मत बनाना घरोंदें सागर किनारों पे
हो सकता है यह लहर तेरा घर तो तोड़ जाà¤à¤—ी
पर शंख मोती मणि सब तेरे लिठछोड़ जाà¤à¤—ी
घर तेरा à¤à¤²à¥‡ ही बिखरे कला न तेरी जाà¤à¤—ी
पर छोड़ दिया जो सृजन तो यह पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ पचताà¤à¤—ी
जो लहर आà¤à¤—ी वह कà¥à¤› देकर ही जाà¤à¤—ी
à¤à¥€à¤°à¥à¤¤à¤¾ से कà¤à¥€ कोई कà¥à¤¯à¤¾ पता है
लगे रहो, तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ जाता है
कà¥à¤› ना साथ आया नाही साथ जायेगा
पर बनाया à¤à¤• पथ किसी à¤à¤Ÿà¤•à¥‡ को काम आà¤à¤—ा
डर कर जो à¤à¤¾à¤—े तो यह लहर खा जाà¤à¤—ी
अपनाà¤à¤—ी à¤à¥€ नहीं शव किनारे छोड़ जाà¤à¤—ी
जो लहर आà¤à¤—ी वह कà¥à¤› देकर ही जाà¤à¤—ी
जीवन तो यà¥à¤¦à¥à¤§ है इन आती जाती लेहेरों से
मत डर इन उफनते पानी गेहेरों से
इसी समà¥à¤¦à¥à¤° में ही उस पार का पथ छà¥à¤ªà¤¾ है
जो डटा रहा अंतिम तक, मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ उसको ही à¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤—ी
कà¥à¤¯à¥‚ंकि, जो लहर आà¤à¤—ी वह कà¥à¤› देकर ही जाà¤à¤—ी.
जो लहर आà¤à¤—ी वह कà¥à¤› देकर ही जाà¤à¤—ी http://t.co/GtOKlh0MfG