एक ऐसी जगह पर जाता है मन जो दूर नहीं पर पास भी ना हो
जहाँ आग सी तपती रेत पर एक शीतलता सी भिछ्ती हो
जहाँ दूर दूर तक तरु नहीं पर छाव हमेशा मिलती हो
जहाँ प्यास बुझाने को नीर नहीं पर दरिया गहरी बहती हो
एक ऐसी जगह पर जाता है मन जो दूर नहीं पर पास भी ना हो
जहाँ रात के उजले साये में एक दिन नया सा दिखता हो
हो ख्वाहिश बड़ी दिल में पर पाने की कुछ आस न हो
एक ऐसी जगह पर जाता है मन जो दूर नहीं पर पास भी ना हो
हो दूर बहुत में दुनिया से एक दुनिया मेरे पास ही हो
संसार लिए मैं फिरता हूँ पर कहने को एकाकी हूँ
एक ऐसी जगह पर जाता है मन जो दूर नहीं पर पास भी ना हो…
[Note: The photo is a reproduction of the oil painting “Wanderer above the Sea of Fog” by the German Romantic artist Caspar David Friedrich. The poem is mine.]
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