एक दर्द भरी पुकार कोई देता है, हम खड़े खड़े यह सोचते हैं
यह कौन बुलाता जाता है, हम कौन इसके लगते है
वह रक्त में है लतपत, हमे इससे क्या है मतलब
हो खून या हो पानी, अपनी तो अच्छी है ज़िन्दगानी
फिर हमको क्या मतलब, कौन सा गुलशन उजड़ता है
किस कली की लुटती है जवानी
हम तो एक दम ठीक हैं हमारे साथ कोई बात नहीं
दुसरे का दर्द समझने के लिए, हमारे पास जज़्बात नहीं
हम तो है मस्त, पेट भरा है हमारा क्यूंकि
उस गरीब से क्या मतलब जिसकी खेती है सूखी
हैं आग लगी चारो ओर पर हमारा घर तो सुरक्षित है
हैं उसके सपने भिखरे हुए पर अपने आरमान तो संचित हैं
हैं ऐसे जिसके आरमान यहाँ वो सब यह ध्यान रखें
वो काल जो ऊपर बैठा है जो विनाश साथ ले आता है
उसने न किसी को छोड़ा है, वो किसी को भी न छोड़ेगा
है आज तुम्हारा पेट भरा कल शायद अन को तरसोगे
जिस भाग्य पर इतना इतराते हो कल शायद उसके लिए दिल रोयेगा
जब कोढ़ सी बदकिस्मती लेकर तुम जगह जगह पर भटकोगे
तब कोई न तुमको पूछेगा और कोई न पास बुलाएगा
जिस तन पर है घमंड बहुत कल शायद उससे मन पित्रायेगा
जो आज पूजते है तुझे, कल वह सब तुझको ठुकरायेंगे
बस तेरी दुर्गत के सितारे तेरा साथ निभाएंगे
यह दुनिया की ही रीत है यह तुने ही बनाई है
राम ने तो स्वर्ग दिया था यह तेरी रची खुदाई hai
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