चींटियों सा कभी रेंगता है, तो कभी लेहरेता दरिया सा चला जाता है
वक्त तो हांथ में रेत जैसा है, न जाने कहां से निकल जाता है
कल था की तुम मिले थे, आज है की जा रहे हो
जो वादे किए थे तुमने, आज उन सब को झूठला रहे हो
कहने को कुछ और नहीं, तो यह कहता हूं में
जहां जाओ खुश रहो, जीवन में मन लगा के अपना काम करना
और कभी फुर्सत मिले तो पीछे मुड़ के इस मील के पत्थर को याद करना