प्रकृति के नियम को निर्विवाद निभाएगी,
जो लहर आएगी, कुछ देकर ही जाएगी
तुम डरना मत जीवन की इन लहरों से
छोड़ो मत बनाना घरोंदे सागर किनारों पे
हो सकता है यह लहर तेरा घर तो तोड़ जाएगी
पर शंख मोती मणि सब तेरे लिए छोड़ जाएगी
घर तेरा भले ही बिखरे कला न तेरी जाएगी
पर छोड़ दिया जो सृजन तो यह प्रकृति पछताएगी
जो लहर आएगी वह कुछ देकर ही जाएगी
भीरुता से कभी कोई क्या पता है
लगे रहो, तुम्हारा क्या जाता है
कुछ ना साथ आया नाही साथ जाएगा
पर बनाया एक पथ किसी भटके को काम आएगा
डर कर जो भागे तो यह लहर खा जाएगी
अपनाएगी भी नहीं शव किनारे छोड़ जाएगी
जो लहर आएगी वह कुछ देकर ही जाएगी
जीवन तो युध्द है इन आती जाती लहरों से
मत डर इन उफनते पानी गेहरों से
इसी समुन्द्र में ही उस पार का पथ छुपा है
जो डटा रहा अंतिम तक, मुक्ती उसको ही भायेगी क्यूंकि,
जो लहर आएगी वह कुछ देकर ही जाएगी।